विश्वविद्यालय में हिन्दी भाषा के प्रति और अधिक जागरूकता पैदा करना हमारी प्राथमिकता – डॉ॰ रणपाल सिंह
विश्वविद्यालय में हिन्दी भाषा के प्रति और अधिक जागरूकता पैदा करना हमारी प्राथमिकता - डॉ॰ रणपाल सिंह
चौधरी रणबीर सिंह विश्वविद्यालय, जींद में आज ‘विश्व हिन्दी दिवस’ के उपलक्ष्य में हिन्दी-विभाग में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। आज भारत सहित पूरी दुनिया में ‘विश्व हिंदी दिवस’ मनाया जा रहा है। हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए वर्ष 2006 से हर साल 10 जनवरी को ‘विश्व हिंदी दिवस’ मनाया जाता है। दुनियाभर में हिंदी का विकास करने और एक अंतर्राष्ट्रीय भाषा के तौर पर इसे प्रचारित-प्रसारित करने के मकसद से ‘विश्व हिंदी सम्मेलनों’ की भी शुरुआत हुई। पहला विश्व हिंदी सम्मेलन 10 जनवरी, 1975 को नागपुर में आयोजित हुआ था।
‘विश्व हिंदी दिवस’ मनाने का मकसद दुनिया के तमाम देशों में बसे भारतीयों को एक सूत्र में बांधना भी है। अंतर्राष्ट्रीय फलक पर यह भाषा अपनी उपयोगिता साबित कर रही है। हिन्दी करोड़ों भारतीयों के संपर्क और आपसी संवाद की भाषा है। इस दिन देश के सभी सरकारी दफ्तरों, स्कूलों, विदेशी विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाने वाली पीठों सहित अलग-अलग जगहों पर तमाम तरह के कार्यक्रम होते हैं। आज दुनिया के कई विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जाती है।
कुलपति डॉ॰ रणपाल सिंह ने सभी को ‘विश्व हिन्दी दिवस’ की बधाई देते हुए बताया कि ‘विश्व हिंदी दिवस’ को हर साल एक थीम के साथ सेलिब्रेट किया जाता है। थीम के तहत ही इससे जुड़े कार्यों को संपन्न किया जाता है। इस वर्ष ‘विश्व हिंदी दिवस’ की थीम ‘हिंदी पारंपरिक ज्ञान से कृत्रिम बुद्धिमत्ता तक’ है। विश्वविद्यालय में इस थीम आधारित कार्यक्रमों का आयोजन करवाया जाएगा जिसमें हिन्दी और क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा मिले।
कुलसचिव प्रो० लवलीन मोहन ने हिन्दी के प्रचार-प्रसार में योगदान दे रहे सभी महानुभावों और भाषाविदों को विशेष रूप से बधाई देते हुए कहा कि हिन्दी भाषा हमारी राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है। हमारा नैतिक दायित्व बनता है कि हम हिन्दी को विश्व पटल पर स्थापित करें। इसलिए हमें अपनी दिनचर्या में अधिक से अधिक कार्य हिन्दी में करना चाहिए।
अधिष्ठाता मानविकी संकाय प्रो० एस के सिन्हा ने इस अवसर पर कहा कि हिन्दी प्रेम और सौहार्द्र की भाषा है। हमारी हिंदी समावेशी है। इसमें अनेक भाषाएँ जैसे उर्दू, फारसी, अंग्रेजी आदि के शब्द मिले हुए हैं। इसमें वह सभी गुण हैं जो साहित्य को समृद्ध करते हैं।
डॉ॰ मंजुलता, हिन्दी विभाग ने कहा कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता हिंदी के स्थाई भविष्य को सुनिश्चित कर सकती है इसके लिए हमें कृत्रिम मेधा को खुले दिल से अपनाना होगा। आज कृत्रिम बुद्धिमत्ता जीवन के हर पहलू को प्रभावित कर रही है और ऐसा माना जा रहा है कि अगले एकाध दशक में कृत्रिम बुद्धिमत्ता की बदौलत हमारी दुनिया का कायाकल्प होने वाला है। हिंदी सहित हमारी भाषाएँ भी इस बदलाव से अछूती नहीं रहने वालीं और न ही उन्हें इससे अप्रभावित रहना चाहिए।
डॉ॰ जयपाल सिंह राजपूत, जनसम्पर्क अधिकारी ने कहा कि हिंदी वह गंगा है जिसमें पूरा भारत डूबा हुआ है जो अपने निर्मल जल से पूरे भारत को ही नहीं अपितू पूरे विश्व को सींच रही है। आज हिंदी का प्रसार इतना हो गया है कि लगभग हर व्यक्ति हिंदी को किसी-न-किसी स्तर पर समझता है और उसमें कुछ हद तक अभिव्यक्ति की क्षमता भी रखता है। अनेक भाषाओं के उत्तम साहित्य का अनुवाद आज हिंदी में हो चुका है। हिंदी आज वैश्विक परंपरा को अपने अंदर सहेजती है, समेटती है और उसे दिशा देने का भी कार्य करती है।
वरिष्ठ कवयित्री, जीन्द इकाई, परिषद् महामंत्री मन्जु मानव ने कहा कि हिन्दी की बिन्दी सिखाती है हमको, अस्मत तो इसकी बचानी पड़ेगी। हिन्दी का प्रेम अध्यात्म और तर्क को साथ रखता है। कबीर की बातें गहरी है परंतु फिर भी उनकी मूल भावना प्रेम ही है जो पूरे विश्व को एक परिवार मानती हैं और यही हमारी हिंदी है।
अखिल भारतीय साहित्य परिषद के प्रांतीय प्रचार-प्रसार मंत्री डॉ॰ शिवनीत सिंह ने कहा कि कृत्रिम मेधा का सर्वाधिक लाभ हिंदी भाषा को होने वाला है। इससे हिन्दी भाषा साधकों के लिए संभावनाएं और सुअवसर बढ़ेंगे। निश्चित ही हिन्दी का भविष्य अत्यंत उज्ज्वल है।
डॉ॰ ब्रजपाल ने बताया कि हिंदी भाषा की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए कई राज्य स्तरीय सरकारों ने अपने यहाँ मेडिकल व इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी हिंदी में शुरू कर दी है। यह उन छात्रों के लिए किसी तोहफे से कम नहीं है, जो हिंदी भाषीय क्षेत्रों से आते हैं और उनकी हिंदी भाषा में अधिक रुचि होती है।
इस मौके पर वाणिज्य विभाग से सत्यानन्द, हिन्दी विभाग से शैलेन्द्र भोला, भीम सिंह, सोनू एवं उधम सिंह आदि उपस्थित रहे।