प्रकृति स्वयं सबसे बडी चिकित्सक – डॉ॰ रणपाल
प्रकृति स्वयं सबसे बडी चिकित्सक - डॉ॰ रणपाल
प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार 'आहार ही औषधि' है- कुलपति
‘प्राकृतिक चिकित्सा और योगा थेरेपी’ के नाम रहा कार्यशाला का चौथा दिन
चौधरी रणबीर सिंह विश्वविद्यालय में योग विज्ञान विभाग द्वारा आयोजित प्राकृतिक चिकित्सा कार्यशाला के चौथे दिन छात्रों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया साथ ही जीवन में प्राकृतिक चिकित्सा के मूल्यों को समझा। इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में श्री सूर्यदेव आचार्य, डॉ॰ गोविंद व नीलम जागलान जी मौजूद रही। श्री सूर्यदेव जी ने प्राकृतिक चिकित्सा से होने वाले लाभों के साथ-साथ विद्यार्थियों को विभिन्न प्राकृतिक चिकित्सा के तरीकों से अवगत कराया। सूर्य देव जी ने बताया की किस बीमारी के लिए हमें कौन-सी चिकित्सा को अपनाना चाहिए। साथ ही उन्होंने बताया कि प्राकृतिक चिकित्सा पांच तत्वों द्वारा की जाती है और इससे जटिल से जटिल रोग का इलाज संभव है। प्राकृतिक चिकित्सा रोग को जड़ से खत्म करने का समर्थ रखती है। मिट्टी चिकित्सा, जल चिकित्सा, वायु चिकित्सा, मालिश चिकित्सा, आहार चिकित्सा, उपवास चिकित्सा एवं स्नान चिकित्सा आदि के बारे में विद्यार्थियों को जानकारी प्रदान की एवं विद्यार्थियों को चिकित्सा के व्यावहारिक प्रयोग करके दिखाए।
कुलपति डॉ॰ रणपाल सिंह ने बताया कि प्रकृति से तो बड़ा चिकित्सक कोई है ही नहीं। शरीर में स्वयं को रोगों से बचाने और अस्वस्थ हो जाने पर पुनः स्वास्थ्य प्राप्त करने की क्षमता विद्यमान है। प्राकृतिक चिकित्सा में औषधियों का प्रयोग नहीं होता बल्कि आहार ही औषधि होती है।
कुलसचिव प्रो॰ लवलीन मोहन ने बताया कि प्राकृतिक चिकित्सा न केवल उपचार की पद्धति है, अपितु यह एक जीवन पद्धति है। इसे बहुधा 'औषधिविहीन उपचार पद्धति' कहा जाता है। यह मुख्य रूप से प्रकृति के सामान्य नियमों के पालन पर आधारित है। जहाँ तक मौलिक सिद्धांतो का प्रश्न है, इस पद्धति का आयुर्वेद से निकटतम सम्बन्ध है।
योगा थैरेपिस्ट, डॉ॰ गोविंद द्वारा प्राकृतिक चिकित्सा के महत्वपूर्ण सिद्धांतों की चर्चा की गई। उन्होंने अपने व्याख्यान में यह बताया की प्राकृतिक चिकित्सा बहुत पुरानी चिकित्सा है यह सदियों से चली आ रही चिकित्सा है। संसार के आरंभ में यही चिकित्सा थी। इसके बाद श्रीमती नीलम जागलान अपने योग के अनुभव से विद्यार्थियों को अवगत कराया। उन्होंने बताया योग से उनके जीवन में बड़े-बड़े परिवर्तन हुए हैं। योग में आने के बाद ही मुझे जीवन की परिभाषा पता चली। उन्होंने बताया जब वह विश्वविद्यालय की छात्रा थी तो उन्होंने योग विज्ञान विभाग के अध्यापकों द्वारा बहुत कुछ सीखने को मिला।
कार्यक्रम की शोभा बढ़ाते हुए डॉक्टर वीरेंद्र आचार्य जी ने भी प्राकृतिक चिकित्सा की अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी विद्यार्थियों के बीच रखी तथा विद्यार्थियों को भविष्य में अच्छे डॉक्टर बनने के लिए प्रोत्साहित किया। कार्यक्रम के अंत में योग विज्ञान विभाग के सदस्यों के साथ डॉ॰ अजमेर जी, डॉ. देवेंद्र एवं डॉ॰ जितेंद्र जी द्वारा मुख्य अतिथियों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर डॉ॰ ज्योति मलिक, डॉ॰ वीरेंद्र आचार्य, डॉ॰ सुमन पूनिया, डॉ॰ मंजू सुहाग तथा डॉ॰ जयपाल सिंह राजपूत के साथ-साथ विश्वविद्यालय के अन्य सदस्य मौजूद रहे।