प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति ही सही मायने में तंदुरूस्ती का बीमा है – डॉ॰ रणपाल
प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति ही सही मायने में तंदुरूस्ती का बीमा है - डॉ॰ रणपाल
विश्वविद्यालय में ‘समग्र स्वास्थ्य के लिए प्राकृतिक चिकित्सा’ विषय पर आयोजित कार्यशाला सम्पन्न हुई
योग विज्ञान विभाग द्वारा आयोजित ‘समग्र स्वास्थ्य के लिए प्राकृतिक चिकित्सा’ विषय पर आयोजित साप्ताहिक कार्यशाला के समापन के अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और वक्ता के रूप में स्वामी शंकारानंद जी महाराज (संस्थापक, भक्ति आश्रम ट्रस्ट, सारणी खेड़ी, सफीदों, जींद) तथा विशिष्ट अतिथि व रिसोर्स पर्सन के रूप में डॉ० शिव कुमार धीमान (मुख्य चिकित्सक, आरोग्यम केंद्र, जींद) रहे।
कुलपति डॉ॰ रणपाल ने बताया कि वर्तमान समय में योग और प्राणायाम के माध्यम से लोगों में स्वास्थ्य और प्राकृतिक उपचार के प्रति उत्साहजनक जागरूकता देखी गई है; हालांकि इनकी उत्पति भी भारत में ही हुई है। लेकिन प्राकृतिक चिकित्सा बीमारियों की रोकथाम और प्रबंधन के अलावा स्वास्थ्य में सुधार के लिए एक प्रभावी तरीका साबित हुआ है। प्राकृतिक चिकित्सा में बढ़ते वैज्ञानिक अनुसंधान के साथ-साथ इसके चिकित्सीय पहलुओं का भी पता लगाया जा रहा है। बताया गया है कि प्राकृतिक चिकित्सा न्यूरोहार्मोनल तंत्र को ट्रिगर करके स्वायत्त कार्यों में सुधार करता है और यह उपचार पद्धति हर प्रकार से फायदेमंद भी साबित हुई है। प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति ही सही मायने में तंदुरूस्ती का बीमा है।
कुलसचिव प्रो॰ लवलीन मोहन ने बताया कि प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति सिर्फ एक चिकित्सा पद्धति नहीं है बल्कि यह एक जीवन पद्धति है। जब अन्य सभी इलाज असफल हो जाते हैं तब भी प्राकृतिक चिकित्सा में इलाज सम्भव है।
इस अवसर पर स्वामी शंकारानंद जी ने ‘प्राकृतिक चिकित्सा में राम-तत्व की भूमिका’ पर विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए बताया कि जीवन का आधार राम तत्व में ही समाया हुआ है। पंचतत्वों से बना यह शरीर केवल एक साधन मात्र है परंतु इस शरीर के भीतर अपने स्वरूप को जानना, स्व को पहचाना ही उस राम तत्व को जानने के समान है। उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में व्यक्ति बीमारी को ठीक करने के लिए विभिन्न प्रकार की दवाइयों का सेवन तो अवश्य करते हैं परंतु उन रोगों के कारणों की चिंता कोई नहीं करता।
अतः आज के विज्ञानवादी युग में उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिए व्यक्ति को रोगों के कारणों से बचने का उपाय अवश्य अपनाना चाहिए और इसके लिए प्राकृतिक चिकित्सा, आयुर्वेद, योग आदि के अभ्यासों को अपनाकर पाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि मोह, आसक्ति आदि के कारण व्यक्ति विभिन्न प्रकार के मनोरोगों से ग्रसित हो जाता है परंतु इन सभी विकारों से मुक्त होने के लिए ‘राम-नाम’ परम औषधि है। संवेदनशील और विवेकवान व्यक्ति ही इस राम तत्व को जीवन में अपनाकर परम शांति और आनंद की अनुभूति प्राप्त करते हैं। राम नाम की साधना सांसों के साथ जोड़कर अपने मन को एकाग्र करने के लिए अचूक उपाय है। इस अवसर पर उन्होंने समस्त प्रतिभागियों से राम-तत्व को सदैव स्मरण रखने और उसके अनुसार अपने जीवन के व्यावहारिक पक्ष को बनाने के लिए आह्वान किया।
विशिष्ट अतिथि व रिसोर्स पर्सन के रूप में कार्यक्रम में शिरकत कर रहे डॉ० शिवकुमार धीमान ने अपने उद्बोधन में विद्यार्थियों को मिट्टी-पट्टी और शिरोधारा के महत्व को उजागर करते हुए विभिन्न शारीरिक रोगों के निदान करने के लिए उनके उपयोग करने की विधियों को बताया। कार्यशाला में योग विज्ञान विभाग तथा विश्वविद्यालय के अन्य विभागों के प्रतिभागियों ने उपस्थित रहकर अपनी जिज्ञासा के रूप में बहुत से प्रश्न पूछे जिनका समाधान भी उन्होंने अपने उद्बोधन के माध्यम से किया।
इस अवसर पर योग विज्ञान की प्रभारी डॉ० ज्योति मालिक द्वारा गणमान्य अतिथियों को दुशाला व स्मृति चिन्ह भेंटकर उनका सम्मान किया गया। इस अवसर पर योग विज्ञान विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ० वीरेंद्र कुमार, डॉ० जयपाल सिंह राजपूत, योग विज्ञान विभाग और अन्य विभागों के प्रतिभागी उपस्थित रहे। मंच संचालन का कार्य डॉ० जयपाल सिंह राजपूत के द्वारा किया गया।