विकसित भारत के निर्माण में भारतीय भाषाओं की भूमिका
आज भारतीय भाषा समिति, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के सहयोग से चौधरी रणबीर सिंह विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग तथा भारतीय शिक्षण मंडल, हरियाणा प्रांत के संयुक्त तत्वावधान में 'विकसित भारत के निर्माण में भारतीय भाषाओं की भूमिका' विषय पर अखिल भारतीय भाषा सम्मेलन का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम की शुरुआत आभासी माध्यम द्वारा श्री चामू कृष्ण शास्त्री, अध्यक्ष भारतीय भाषा समिति के सन्देश से हुई। उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में डॉ० पुष्पेंद्र राठी, अखिल भारतीय सह-प्रमुख शालेय प्रकल्प, भारतीय शिक्षण मण्डल, विशिष्ट अतिथि, डॉ० जसपाल कौर, अखिल भारतीय सह-प्रमुख युवा आयाम, भारतीय शिक्षण मण्डल व मुख्य वक्ता डॉ० कुलदीप सिंह रहे।
कार्यक्रम के मुख्य संरक्षक एवं उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ० रणपाल सिंह ने आये हुए मुख्य अतिथि, विशिष्ट अतिथियों, शोधार्थियों आदि का स्वागत किया व् अपने उद्बोधन में इस तरह के सम्मेलन की आवश्यकता पर जोर देते हुए बताया कि विदेशी आक्रांताओं द्वारा हजारों वर्षों तक भारतीय संस्कृति, सभ्यता और शिक्षण पद्धति पर कुठाराघात करने से भारतीय ज्ञान परम्परा चरमरा गई थी। अब स्वतंत्र भारत में लागू की गयी नई शिक्षा नीति ने भारतीय शिक्षा पद्धति को भारतीय भाषाओं को समृद्ध बनाने के लिए इसकी आवश्यकता है।
उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि डॉ० पुष्पेंद्र राठी जी ने कहा कि जिस प्रकार मधुमक्खी अनेक पुष्पों से रस एकत्रित करती है उसी प्रकार ज्ञान-पिपासु विद्यार्थी को भी विभिन्न भाषाओं के माध्यम से ज्ञान अर्जित करना चाहिए। हमारी दैनिक दिनचर्या से हमारे संस्कारों का पता चलता है, तथा संस्कार हमारे मस्तिस्क के लिए साफ्टवेयर के समान होता है। जिस तरह के विचार मस्तिष्क में चलते है, वैसा ही व्यक्ति का जीवन बनता जाता है। अतः राष्ट्र के प्रति प्रेम-भावना रखते हुए सदैव श्रेष्ठ विचारों से मस्तिष्क को श्रेष्ठ मार्ग की और सबल बनाने की आवश्यकता पर उन्होंने जोर दिया।
उद्घाटन समारोह के अवसर पर डॉ० कुलदीप सिंह ने पंजाबी और हिंदी भाषा के माध्यम से बीज वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा की विरासत अत्यंत समृद्ध है। हमें भारत की अन्य भाषाओं में भी उसका अनुवाद करने और संकलन करने की आवश्यकता है। उन्होंने देश के महापुरुषों के माध्यम से मातृभूमि की रक्षा करने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने के अनुरूप ही आज के युवाओं को स्वयं ही अपने जीवन तथा क्षेत्रीय समस्याओं का समाधान खोजने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि हमारी एकता में ही समस्त ऐश्वर्य निहित हैं।
विशिष्ट अतिथि डॉ० जसपाल कौर ने बताया कि यह सम्मेलन विद्यार्थी केन्द्रित है। विद्यार्थी भारत का भविष्य है। उन्होंने भारतीयता व भाषा के साथ सह-सम्बन्ध स्थापित करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
इस सम्मलेन में विश्वविद्यालय और अन्य महाविद्यालयों के 371 शोधार्थियों, विद्यार्थियों, शिक्षकों आदि के द्वारा पंजीकरण करवाया गया। जिसमें 187 शोध-पत्रों का प्रस्तुतीकरण पाँच अलग-अलग कक्षों में समानांतर रूप से करवाया गया।
कार्यक्रम में प्रथम तकनीकी सत्र की अध्यक्षता डॉ० जितेन्द्र भरद्वाज द्वारा की गयी तथा विषय विशेषज्ञ के तौर पर डॉ० बलबीर शास्त्री, डॉ० विपिन गुप्ता और डॉ० दर्शना द्वारा भारतीय भाषाओं को रोजगारोन्मुखी बनाने पर प्रकाश डाला गया।
समापन समारोह के अवसर पर कार्यक्रम के संयोजक, प्रो० एस. के. सिन्हा, अधिष्ठाता, मानविकी संकाय ने इस समारोह के आयोजन करने की आवश्यकता से सभी को अवगत कराया।
समापन समारोह में कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में प्रोफेसर रमेश चंद्र भारद्वाज, कुलपति महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय कैथल रहे। उन्होंने अपने उद्बोधन में बताया कि अपने देश की मातृभाषा को शिक्षा का आधार बनाकर ज्ञान विज्ञान की जिस देश ने भी आराधना की है वह देश विकसित होते चले गए। भारत सरकार द्वारा नई शिक्षा नीति 2020 में राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए भारतीय भाषाओं को समृद्ध करने का प्रावधान किया गया है। इसमें अपनी भाषा की शब्दावली को समृद्ध करने और नवाचार के माध्यम से बेहतर बनाने की पहल की गई है। उन्होंने महात्मा गाँधी के विचार को बताते हुए कहा कि जो व्यक्ति अपनी मातृभाषा को नहीं जानता वह कोई उत्पादन नहीं कर सकता, अर्थात् अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त न करने के कारण हम वैचारिक दृष्टि से कमजोर बनते चले गए। उन्होंने आयोजकों को अखिल भारतीय भाषा सम्मेलन आयोजित करने पर बधाई देते हुए कहा कि इसके माध्यम से विभिन्न भारतीय भाषाओं और क्षेत्रीय भाषाओं को नवाचार और अनुसंधान द्वारा समृद्ध बनाने में यह सम्मेलन उपयोगी साबित होगी।
इस अवसर पर धन्यवाद ज्ञापित करते हुए विश्वविद्यालय की कुलसचिव तथा कार्यक्रम की संरक्षक प्रोफेसर लवलीन मोहन ने कार्यक्रम की शोभा बढ़ाने पर मुख्य अतिथि, विशिष्ट अतिथियों विश्वविद्यालय के सभी शैक्षणिक और गैर-शैक्षणिक कर्मचारियों शोधार्थी और विद्यार्थियों के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि भारतीय शिक्षण मंडल और भारतीय भाषा समिति ने भारतीय भाषाओं को नई शिक्षा नीति के द्वारा प्राथमिक स्तर पर शिक्षा मातृभाषा में अनिवार्य रूप से देकर विद्यार्थियों के व्यक्तित्व का और दृढ़ मानसिक विकास के लिए उपयोगी बताया। साथ ही उन्होंने बताया कि भारतीय भाषाएँ इंद्रधनुष की तरह है, जो भारतीय एकता और अखंडता में संवाहक की भूमिका निभाती है। 21वीं सदी में नई शिक्षा नीति द्वारा नए संकल्पों को धारण करते हुए विकसित भारत के सपने को साकार करने में यह सम्मेलन अहम योगदान निभाएगा।
इस कार्यक्रम में मेरी भाषा, मेरा हस्ताक्षर तथा भारतीय भाषाओं पर आधारित पुस्तक प्रदर्शनी और महापुरुषों द्वारा भारतीय भाषाओं के परिपेक्ष में दिए गए अमूल्य वचनों को दर्शाया गया। मेरी भाषा मेरा गौरव, सेल्फी प्वाइंट बनाकर विद्यार्थियों, शोधार्थियों और आए हुए सभी अतिथियों को अपनी भाषा के प्रति जागरूक बनाने का कार्य किया गया।
इस अवसर पर भारतीय शिक्षण मंडल से डॉ० हुमा, डॉ० दिलबाग शास्त्री, डॉ० पवन, श्रीमान राजू और विश्वविद्यालय से डॉ० मंजू रेढू, डॉ० जयपाल सिंह राजपूत, डॉ० ज्योति मलिक, डॉ०मंजू सुहाग, डॉ० बृजपाल, डॉ० आदि उपस्थित रहे। मंच संचालन योग विज्ञान के सहायक प्राध्यापक डॉ० वीरेंद्र कुमार तथा डॉ० सुमन पूनिया द्वारा किया गया।