विश्वविद्यालय में धूमधाम से मनाया भारतीय नव वर्ष
चौधरी रणबीर सिंह विश्वविद्यालय, जीन्द एवं अखिल भारतीय साहित्य परिषद, हरियाणा प्रांत के संयुक्त तत्वावधान में आज भारतीय नववर्ष विक्रम संवत्सर 2081 चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की पावन वेला में ‘स्वागत नवागत' उत्सव का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम के मुख्य संरक्षक और विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति डॉ० रणपाल सिंह ने भारतीय नववर्ष की सबको बहुत-बहुत बधाई देते हुए उत्सव में आए सभी अतिथियों, शिक्षाविदों, अधिकारी गणों और युवाओं का स्वागत किया।
उन्होंने कहा कि आप सब जानते हैं कि हमारी प्राचीन एवं गौरवशाली संस्कृति का विश्वभर में अपना एक बेहद महत्वपूर्ण और विशेष सम्मानजनक स्थान हमेशा से रहा है। आज के दिखावे वाले व्यवसायिक दौर में जब पैसे व बाजार की ताकत के बलबूते दुनिया में पश्चिमी सभ्यता का अंधानुकरण करने वाला बहुत तेजी से प्रायोजित माहौल बनाया जा रहा है, उस वक्त भी हमारी संस्कृति पूरे संसार में एक विशेष पहचान रखती है। क्योंकि हमारी सनातन संस्कृति हम सबको एकजुट करके अपने रिश्ते-नाते व संस्कारों की प्राचीन जड़ों से बांधकर रखें हुए हैं।
हिन्दू नववर्ष को भी मनाने के पीछे भी विभिन्न धार्मिक, सांस्कृतिक कारणों के साथ-साथ पूर्णतया वैज्ञानिक आधार स्वयं प्रकृति में ही मौजूद हैं। पौराणिक मान्यता है कि बसंत ऋतु का आगमन भारतीय नववर्ष के साथ ही होता है। बसंत में पेड़-पौधे नए फूल और पत्तियों से लद जाते हैं। इसी समय किसानों के खेतों में फसल पककर तैयार होती है। चारों ओर बसंत ऋतु में जीवन की नवीनता दिखाई देने लगती है। ऐसे में प्रकृति भी हिन्दू नववर्ष का स्वागत करती हुई प्रतीत होती है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और मुख्य वक्ता के रूप में वरिष्ठ राष्ट्रवादी चिंतक प्रोफेसर सीताराम व्यास रहे। उन्होंने कहा कि भारतीय हिंदू कैलेंडर की गणना सूर्य और चंद्रमा के अनुसार होती है। दुनियाँ के तमाम कैलेंडर किसी न किसी रूप में भारतीय हिंदू कैलेंडर का ही अनुसरण करते हैं। भारतीय पंचांग और काल निर्धारण का आधार विक्रम संवत ही हैं। जिसकी शुरुआत मध्य प्रदेश की उज्जैन नगरी से हुई। यह हिंदू कैलेन्डर राजा विक्रमादित्य के शासन काल में जारी हुआ था तभी इसे विक्रम संवत के नाम से भी जाना जाता है।विक्रमादित्य की जीत के बाद जब उनका राज्यारोहण हुआ तब उन्होंने अपनी प्रजा के तमाम ऋणों को माफ करने की घोषणा करने के साथ ही भारतीय कैलेंडर को जारी किया इसे विक्रम संवत नाम दिया गया। यही नहीं यूनानियों ने नकल कर भारत के इस हिंदू कैलेंडर को दुनियाँ के अलग-अलग हिस्सों में फैलाया। भले ही आज दुनिया भर में अंग्रेजी कैलेंडर का प्रचलन बहुत अधिक हो गया हो लेकिन फिर भी भारतीय कलैंडर की महत्ता कम नहीं हुई। आज भी हम अपने व्रत- त्यौहार, महापुरुषों की जयंती पुण्यतिथि, विवाह व अन्य सभी शुभ कार्यों को करने के मुहूर्त आदि भारतीय कलैंडर के अनुसार ही देखते हैं।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी, पंचकूला डॉ० धर्मदेव विद्यार्थी रहे। विद्यार्थी जी ने कहा कि अपनी संस्कृति संस्कारों का अनुसरण करना रूढ़िवादिता नहीं। बल्कि यह तो वह बहुमूल्य धरोहर है जिससे एक तरफ पूरा विश्व सीख रहा है। अपने धर्म व संस्कृति के उत्सवों को मनाने का सभी में लगाव होना चाहिए। हमारे महापुरुषों व वीर योद्धाओं ने धर्म व संस्कृति की रक्षा के लिए बहुत बलिदान दिया है क्या वह बलिदान इसलिए ही दिया था की एक दिन हम अपनी संस्कृति व धर्म को ही भूल जाएं? अभी भी समय है सभी को मिल-जुलकर ऐसा प्रयास करना चाहिए जिससे विश्व में हमारी संस्कृति का एक ऐसा संदेश जाए कि हम भारतीय अपनी संस्कृति को संरक्षित रखने के लिए एकजुट हैं।
कार्यक्रम की संरक्षिका और विश्वविद्यालय की कुलसचिव प्रोफेसर लवलीन मोहन ने बताया कि हम सब अपनी संस्कृति को अपनाते हुए अपने सभी उत्सवों, त्योहारों को धूमधाम से मनाएं और आपसी भाईचारे व प्रेम को विश्वभर में ले जाएं। यही हमारी संस्कृति है।
कार्यक्रम के संयोजक तथा अधिष्ठाता, मानविकी संकाय, प्रोफेसर एस०के० सिन्हा ने कहा कि भारतीय संस्कृति दुनिया की सबसे प्राचीन संस्कृतियों में से एक है। जिसमें विविधता और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत शामिल है। भारतीय नववर्ष आर्थिक रूप से भी जुड़ा हुआ है। अर्थव्यवस्था की रीढ़ कृषि का सम्बन्ध भी चैत्र (अप्रैल) महीने से ही जुड़ा हुआ है। चैत्र में फसलों की कटाई होने के बाद किसानों के पास धन आता है और जब उनके पास धन आएगा तो निश्चित रूप से खुशहाली आती है।
डॉ॰ मनोज भारत ने स्वागत नवागत उत्सव की प्रस्तावना को विस्तार से दर्शकों के सामने रखते हुए भारतीय संस्कृति के संदर्भों को स्पर्शित किया और कहा कि भारतीय संस्कृति विश्वव्यापी है और सर्वोपरि स्थान बनाने की ओर निरन्तर अग्रसर है। भावी युवा पीढ़ी को इन्हीं जीवन मूल्यों के साथ शुद्ध करना होगा तभी इनका भविष्य सुखद रहेगा।
डॉ॰ मन्जु रेढू ने राष्ट्रवादी चिन्तक माननीय व्यास जी के उदात्त व्यक्तित्व का परिचय विद्यार्थियों से करवाया और कहा उनकी प्रेरणा जीवन की राह को निश्चित ही सुखद बनाती है। हर विद्यार्थी को उनसे प्रेरित होना चाहिए। उन्होंने हरियाणा साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ॰ धर्मदेव विद्यार्थी का स्वागत करते हुए कहा कि यह जीन्द जिले का सौभाग्य है कि डॉ॰ विद्यार्थी साहित्य के उच्च पद पर आसीन हुए हैं उनका जीवन्त व्यक्तित्व अवश्य ही हिन्दी भाषा और हरियाणवी बोली को सकारात्मक धरातल प्रदान करेगा।
अन्तिम सत्र में कवियों ने अपने रसात्मक काव्य पाठ से सभी दर्शकों से मंत्रमुग्ध किया। उन्हें सुनकर युवा वर्ग ने कहा कि कवि सम्मेलन की परम्परा विश्वविद्यालय में अवश्य ही बनी रहनी चाहिए।
श्रीमती मंजू मानव द्वारा लिखित 'अतीत डोर' पुस्तक का और डॉ० अनुपम भाटिया एवं डॉ० स्नेहा द्वारा लिखी गई 'ए नॉवल मॉडल का इन्फ्लुएंस मैक्सिमाइजेशन : ए बिजनेस इंटेलिजेंस एप्रोच' पुस्तक का विमोचन किया गया।
यह पुस्तक डॉ० अनुपम भाटिया एवं डॉ० स्नेहा के शोध पर बिजनेस इंटेलिजेंस का एक मॉडल प्रस्तुत करती है। यह शोध अंतर्विषयी है, इसमें प्रबंधन, वाणिज्य एवं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का समायोजन है। आज के युग में हम इंटरनेट पर स्थान एवं व्यापारिक प्रतिष्ठानों को स्टार रेटिंग देते हैं एवं उस पर अपने विचार व्यक्त करते हैं, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीकी के माध्यम से उस पर रेटिंग एवं विचारों का अवलोकन किया जाता है, एवं उसके पश्चात यह मॉडल बताता है कि एक विशेष क्षेत्र में किस प्रकार का व्यापारिक प्रतिष्ठान खोलना चाहिए जिससे वह प्रगति कर सके। इसके लिए दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु के रेस्टोरेंटों पर शोध कार्य किया गया। यह मॉडल अन्य व्यापारिक प्रतिष्ठानों के लिए भी उपयोगी होगा।
इस कार्यक्रम में प्रोफेसर एस० के० सिंहा, डॉ० मंजुलता, डॉ० सुनील फोगाट, डॉ॰ आनन्द मलिक, डॉ० अजमेर सिंह, डॉ० विशाल वर्मा, डॉ॰ अनुपम भाटिया, डॉ॰ कुलदीप नारा, डॉ० मनोज भारत, डॉ० क्यूटी, डॉ० जगदीप शर्मा राही, श्रीमती पुष्पलता आर्य, श्री विकास यशकीर्ति, श्रीमती मंजू मानव, डॉ० जयपाल सिंह राजपूत, डॉ० वीरेंद्र कुमार तथा डॉ० सुमन पूनिया आदि को पुष्पगुच्छ एवं अंगवस्त्र प्रदान कर सम्मानित किया गया। माननीय कुलपति जी ने उत्सव में पधारे विभिन्न समाचार पत्रों के माननीय अधिकारियों को अंगवस्त्र एवं स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया। इन्हीं के साथ डॉ॰ ब्रजपाल, डॉ॰ सुनील कुमार, डॉ॰ अपूर्वा, डॉ॰ संदीप पानू, डॉ॰ आनन्द, डॉ॰ नरेश कुमारी, डॉ॰ सुमन, डॉ॰ सत्यानन्द, डॉ॰ बालाराम, डॉ॰ दीपक अरोड़ा तथा मनोविज्ञान विभाग एवं समाजशास्त्र विभाग के प्राध्यापकगण मौजूद रहे।
कार्यक्रम का कुशल मंच संचालन डॉ० सुमन पूनिया द्वारा किया गया