विश्वविद्यालय में बिरसा मुण्डा जयन्ती पर मनाया गया ‘जनजातीय गौरव दिवस’
आज बिरसा मुंडा की जयन्ती पर चौधरी रणबीर सिंह विश्वविद्यालय जींद में आज 15 नवम्बर, 2023 को हिंदी एवं इंग्लिश विभाग के संयुक्त तत्वावधान में ‘जनजातीय गौरव दिवस’ मनाया गया।
भारत सरकार द्वारा हर 15 नवम्बर को बिरसा मुंडा की जयंती के उपलक्ष्य एवं बहादुर आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों की स्मृति को समर्पित ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के रूप में घोषित किया गया है।
बिरसा मुण्डा (15 नवम्बर 1875 - 9 जून 1900) एक भारतीय आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी और मुंडा जनजाति के लोक नायक थे। उन्होंने ब्रिटिश राज के दौरान 19वीं शताब्दी के अंत में बंगाल प्रेसीडेंसी (अब झारखंड) में हुए एक आदिवासी धार्मिक सहस्राब्दी आंदोलन का नेतृत्व किया, जिससे वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बन गए। भारत के आदिवासी उन्हें भगवान मानते हैं और 'धरती आबा' के नाम से भी जाना जाता है।
कार्यक्रम की शुरूआत हिन्दी एवं इंग्लिश विभाग की छात्राओं ने आदिवासी कविताओं से की तथा आदिवासियों के बलिदान को याद करते हुए उन्हें नमन किया।
कुलपति डॉक्टर रणपाल सिंह ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारत भूमि पर ऐसे कई नायक पैदा हुई जिन्होंने इतिहास में अपना नाम स्वर्ण अक्षरों से लिखवाया। एक छोटी सी आवाज को नारा बनने में देर नहीं लगती, बस दम उस आवाज को उठाने वाले में होना चाहिए और इसकी जीती जागती मिसाल थे बिरसा मुंडा। कहते हैं न कि जीवन लम्बा न सही लेकिन प्रभावशाली होना चाहिए; कुछ ऐसा ही प्रभाव था बिरसा मुंडा का, जिसने उन्हें आम इंसान से भगवान बना दिया ।
डॉ॰ मञ्जुलता ने बिरसा मुण्डा के छोटे से पच्चीस वर्षीय जीवन को अनुपम कहा। भावपूर्ण नमन करते हुए कहा कि ऐसे व्यक्तित्व अपनी जाति, क्षेत्र अथवा देश के नहीं होते। वे तो पूरे विश्व के लिए अनुकरणीय होते हैं। बिरसा मुंडा ने बिहार और झारखंड की जन जातियों की स्वतन्त्रता, उनके विकास और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अहम रोल निभाया। अपने कार्य और आंदोलन की विजय से उन्होंने पारंपरिक भू-व्यवस्था को बदलने का बीड़ा उठाया। सामाजिक जीवन में एक आदर्श प्रस्तुत किया और नैतिक आचरण की शुद्धता, आत्म सुधार के संदेश दिये।
अंग्रेजी विभाग से डॉ॰ देवेन्द्र सिंह ने आदिवासी कवि हरिराम मीणा की पक्तियों से शुरूआत करते हुए- मैं केवल देह नहीं/मैं जंगल का पुश्तैनी दावेदार हूँ/पुश्तें और उनके दावे मरते नहीं/ मैं भी मर नहीं सकता/मुझे कोई भी जंगलों से बेदखल नहीं कर सकता/उलगुलान! उलगुलान!
इसके पश्चात् उन्होंने बताया कि उलगुलान का मतलब भारी कोलाहल और उथल-पुथल करने वाला और ऐसा हुआ भी। बिरसा मुंडा के नेतृत्व में उलगुलान या कहें मुंडा आंदोलन झारखण्ड के इतिहास का अंतिम और खोंड आदिवासी विद्रोह था जिसमें हज़ारों की संख्या में आदिवासी शहीद भी हुए।
अपनी ज़मीन, जंगल और जल की रक्षा के लिए उलगुलान का आह्वान हुआ, बिरसा मुंडा के साथ हुज़ूम शामिल हुआ जो बिरसा के एक इशारें पर मरने और मारने को तैयार थे। 15 नवंबर को ही ‘जनजातीय गौरव दिवस’ को मनाया जाना सिर्फ एक संयोग नहीं है बल्कि बिरसा मुंडा और उनके जैसे कई आदिवासी क्रांतिकारियों को सम्मान देने की पहल है जो शायद बहुत पहले शुरू हो जानी चाहिए थी लेकिन हुई 15 नवंबर 2021 से।
अन्त में डॉ॰ सुनील कुमार ने इस विचार गोष्ठी को सफल बनाने के लिए उपस्थित स्टाफ के सभी सदस्यों व छात्र-छात्राओं का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में मंच संचालन हिन्दी-विभाग से डॉ॰ ब्रजपाल ने किया। अंग्रेजी, हिन्दी एवं फ्रेंच विभाग से डॉ॰ सुमन, डॉ॰ सीमा, डॉ॰ अनु, डॉ॰ संदीप आदि मौजूद रहे।