“अनुसंधान और प्रकाशन नैतिकता” विषय पर दो दिवसीय (16-17 मार्च, 2023) बहुआयामी राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

March 16, 2023

चौधरी रणबीर सिंह विश्वविद्यालय जींद में डीन एकेडमिक अफेयर्स और केंद्रीय पुस्तकालय के संयुक्त तत्वावधान में आज से "अनुसंधान और प्रकाशन नैतिकता" विषय पर दो दिवसीय (16-17 मार्च, 2023) बहुआयामी राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ।

इस अवसर पर संगोष्ठी निर्देशक प्रोफेसर एस०के० सिन्हा ने कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ० गीता सिंह, निदेशक सीपीडीएचई दिल्ली विश्वविद्यालय, नई दिल्ली, मुख्य वक्ता प्रोफेसर नवल किशोर, स्कूल ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज, इग्नू, नई दिल्ली कार्यक्रम के संरक्षक डॉ० रणपाल सिंह, संरक्षिका प्रोफेसर लवलीन मोहन, विभिन्न विश्वविद्यालयों से आए हुए प्रतिभागियों, शोधकर्ताओं तथा सभागार में उपस्थित सभी गणमान्य अतिथियों का स्वागत व आभार व्यक्त किया । उन्होंने संगोष्ठी शीर्षक "अनुसंधान और प्रकाशन नैतिकता" से आए हुए गणमान्य अतिथियों को दो दिनों तक चलने वाली बहुआयामी राष्ट्रीय संगोष्ठी की रूपरेखा से अवगत कराया ।

प्रो० एस० के० सिन्हा ने अपने स्वागत वक्तव्य में बताया कि शोधकार्य किसी समस्या को खोजने तथा उसके निवारण हेतु किया जाता है । किसी शोध का उद्देश्य अप्रत्यक्ष रूप से समाज को लाभ देना ही होता है। शोध में निम्नलिखित बिंदुओं जैसी इमानदारी, एकात्मता, गोपनीयता, जिम्मेदारी तथा सामाजिक उत्तरदायित्व पर ध्यान देने की आवश्यकता है । उन्होंने बताया कि इस संगोष्ठी में हरियाणा तथा भारत के अन्य राज्यों से 250 से अधिक प्रतिभागियों ने पंजीकरण कराया है । उन्होंने बताया कि दो दिनों तक चलने वाले इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रतिदिन दो अलग-अलग कक्षाओं में तकनीकी सत्रों का आयोजन किया जाएगा, जिसमें प्रतिभागियों द्वारा अपने शोध पत्रों का वाचन किया जाएगा ।

आज दो तकनीकी सत्रों का आयोजन किया जाएगा, तकनीकी सत्र प्रथम के अध्यक्ष, प्रो० कर्मपाल एच०एस०बी०, गुरु जंभेश्वर विश्वविद्यालय, सह-अध्यक्ष डॉ० नरेश देशवाल, सहायक प्राध्यापक, शारीरिक शिक्षा विभाग, चौधरी रणबीर सिंह विश्वविद्यालय तथा रिपोर्टियर डॉ० बालाराम, सहायक प्राध्यापक, मास कम्युनिकेशन विभाग रहे। इस तकनीकी सत्र में लगभग 70 प्रतिभागियों ने अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया ।

दूसरे तकनीकी सत्र के अध्यक्ष डॉ० अनिल कुमार, इंस्टीट्यूट आफ मैनेजमेंट स्टडीज, कुरुक्षेत्र तथा सह-अध्यक्ष डॉ० विजय कुमार, सहायक प्राध्यापक, अर्थशास्त्र विभाग, सीआरएसयू जींद रिपोर्टियर डॉ० पूनम, सहायक प्राध्यापिका, भूगोल विभाग रही । इस सत्र में 60 प्रतिभागियों ने अपने शोध पत्रों का वाचन किया । दोनों ही सत्रों की संचालिका क्रमश: सुश्री सुनैना व सुश्री मनेहा, शोधार्थी प्रबंधन विभाग के द्वारा किया गया ।

कार्यक्रम की मुख्य अतिथि डॉ० गीता सिंह, निदेशक सीपीडीएचई दिल्ली विश्वविद्यालय, नई दिल्ली ने स्वास्थ्य कारणों के चलते कार्यक्रम की सफलता के लिए ऑनलाइन माध्यम से अपना शुभकामना संदेश भिजवाया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुलपति डॉ० रणपाल सिंह ने अपने वक्तव्य में कहा कि इस तरह के कार्यक्रमों से शोध के क्षेत्र में गति मिलती है । विश्वविद्यालय में शोध के स्तर को बढ़ाने के लिए इस तरह के कार्यक्रमों को आयोजित करके शोधार्थियों को शोध के क्षेत्र में बढ़ावा देने के रूप में इस संगोष्ठी का आयोजन करने का उद्देश्य स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि सूचनाओं से ज्ञान प्राप्त होता है तथा अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए एनालिटिकल सोच के द्वारा बुद्धिमत्ता की प्राप्ति होती है । इस अवसर पर उन्होंने आए हुए गणमान्य अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया ।

कार्यक्रम की संरक्षिका प्रोफेसर लवलीन मोहन ने 'अनुसंधान और प्रकाशन नैतिकता' विषय पर संगोष्ठी आयोजित करने के लिए आयोजन समिति को अपनी शुभकामनाएं तथा आए हुए सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया।

मुख्य वक्ता, प्रो० नवल किशोर, स्कूल ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज, इग्नू, नई दिल्ली ने बताया कि शोधकर्ता को कुछ नया जानने के लिए ज्ञान का अर्जन करने की विचारधारा को ध्यान में रखते हुए शोध कार्य को करना चाहिए । शोधकर्ता को शोध कार्य के परिपेक्ष में सही और गलत का बोध होना चाहिए, अपने कार्य के प्रति दृढ़ रहते हुए, समाज के लिए उपयुक्त, पारदर्शिता स्पष्ट करते हुए तथा अपने काम के प्रति सम्मान की भावना बिना किसी पक्षपात के रखते हुए करनी चाहिए। शोध कार्य स्वतंत्र रूप से समाज की भलाई के लिए समस्याओं के निदान के परिपेक्ष में होनी चाहिए ।

शोध कार्य की शुरुआत शोधकर्ता को अपनी समस्या के परिपेक्ष में चरों को पहचानने उनके अंतर संबंधों को तथा समाज पर उनके क्या प्रभाव पड़ते हैं, उन बातों को ध्यान में रखते हुए करनी चाहिए। उन्होंने बताया कि अनुसंधान में नैतिक विचार सिद्धांतों का एक समूह है जो अनुसंधान डिजाइन और क्रिया विधियों का मार्गदर्शन करता है। इन सिद्धांतों में स्वैच्छिक भागीदारी, सूचित सहमति, गुमनामी, गोपनीयता, नुकसान की संभावना और परिणाम संचार शामिल होते हैं। दूसरों से डेटा एकत्र करते समय शोधकर्ताओं को हमेशा एक निश्चित आचार संहिता का पालन करना चाहिए । ये विचार अनुसंधान प्रतिभागियों के अधिकारों की रक्षा करते हैं, अनुसंधान की वैधता को बढ़ाते हैं और वैज्ञानिक अखंडता को बनाए रखते हैं। शोध प्रकाशन नैतिकता वैज्ञानिक प्रकाशनों का निर्माण, प्रसार और उपयोग करते समय लेखकों, समीक्षकों, संपादकों, प्रकाशकों और पाठकों के बीच संबंधों में आचरण मानकों की एक प्रणाली है।

इस अवसर पर मास कम्युनिकेशन विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ० बलराम बिंद द्वारा लिखित "स्त्री बिंब और टीवी सीरियल" पुस्तक का तथा राष्ट्रीय संगोष्ठी में आए हुए विभिन्न शोध पत्रों को एकत्रित करते हुए स्मारिका का माननीय अतिथियों द्वारा विमोचन किया गया ।

संगोष्ठी के सचिव डॉ० अनिल कुमार, सहायक लाइब्रेरियन  ने कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के कुलपति, कुलसचिव व मुख्य वक्ता तथा  हरियाणा के विभिन्न जिलों तथा भारत के अन्य राज्यों से संगोष्ठी में शामिल हुए सभी प्रतिभागियों के प्रति आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के विभिन्न शाखाओं के संकायाध्यक्ष, विभागों के विभागाध्यक्ष, प्राध्यापक, शोधार्थी, विद्यार्थी, पत्रकार, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तथा गैर शैक्षणिक कर्मचारी आदि सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।