विश्वविद्यालय में भारतीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार के लिए होगा ‘अखिल भारतीय भाषा सम्मेलन’ का आयोजन
विश्वविद्यालय में भारतीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार के लिए होगा ‘अखिल भारतीय भाषा सम्मेलन’ का आयोजन
चौधरी रणबीर सिंह विश्वविद्यालय जीन्द में 15 मार्च, 2024 को एक दिवसीय ‘अखिल भारतीय भाषा सम्मेलन’ का आयोजन किया जा रहा है। अखिल भारतीय भाषा सम्मेलन विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग एवं भारतीय शिक्षण मंडल के संयुक्त तत्वाधान में भारतीय भाषा समिति के सहयोग से आयोजित हो रहा है।
विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ० रणपाल सिंह ने कहा कि हमारे सामाजिक-सांस्कृतिक-आर्थिक प्रगति में भारतीय भाषाओं की प्रभावी भूमिका है, जिससे 'विकसित भारत' के लक्ष्य को हम जल्द साकार कर पायेंगे। इसी दृष्टिकोण को अपनाते हुए यह सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है और भविष्य में भी विश्वविद्यालय में ऐसे सेमीनार, कार्यशालाएँ आयोजित होती रहेगी ताकि शिक्षण, शोध और अनुसंधान भाषाओं के विस्तार के साथ समुन्नत हो सके।
कुलसचिव प्रो० लवलीन मोहन ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 ने भारतीय भाषा माध्यम से शिक्षा के लिए कई सार्थक प्रावधानों को प्रस्तुत किया है। जिनके आधार पर शिक्षा मंत्रालय द्वारा अनेक कदम उठाये गये हैं। इन्हीं कदमों को सार्थकता प्रदान करते हुए विश्वविद्यालय में भारतीय शिक्षण मण्डल के संयुक्त तत्वावधान में एक दिवसीय अखिल भारतीय भाषा सम्मेलन की योजना बनाई गई। जिससे हर व्यक्ति भारतीय भाषाओं के संवर्धन में योगदान दे और इनके कारण अपने जीवन को समृद्ध करें, ऐसी भारतीय भाषा पारिस्थितिकी (इकोसिस्टम) बनाने के लिए विश्वविद्यालय कटिबद्ध है।
विश्वविद्यालय में वरिष्ठ संकाय सदस्य डॉ० मंजु रेढू ने बताया कि भारतीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार के लिए भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय द्वारा कई स्तरों पर अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। भारतीय भाषा माध्यम से शिक्षा तक हर विद्यार्थी की सुगम पहुँच बन सके, इसके लिए शिक्षा आदि क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रयास किए जा रहे हैं। उसी कड़ी में विश्वविद्यालय में यह आयोजन किया जा रहा है। क्योंकि भारतीय भाषाएँ हमारे देश की एकता और एकात्मता की अनूठी वाहक हैं। हमारे देश की भाषाएँ आपस में ऐसे मिली हुई हैं कि उनमें समान शब्दावली, समान वाक्य संरचना, समान ध्वनि व्यवस्था आदि बहुतायत में विद्यमान हैं और इन सब से एक ‘भारतीय भाषा परिवार’ का निर्माण होता है। हमारे देश की बहुभाषिक संपदा बहुत ही समृद्ध है जिसकी शक्ति का उपयोग राष्ट्रीय विकास के लिए आवश्यक है।
अधिष्ठाता, मानविकी संकाय प्रो॰ एस॰ के॰ सिन्हा ने कहा कि सामान्यतः भाषा को वैचारिक आदान-प्रदान का माध्यम कहा जा सकता है। भाषा आभ्यन्तर अभिव्यक्ति का सर्वाधिक विश्वसनीय माध्यम है। यही नहीं वह हमारे आभ्यन्तर के निर्माण, विकास, हमारी अस्मिता, सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान का भी साधन है। भारत अनोखा देश है जिसमें अनेक भाषाएँ बोली जाती है। यही भाषायी विविधता भारतवर्ष की एकता को सुदृढ़ आधार देती हैं।
विश्वविद्यालय से सम्बद्ध विभिन्न विभागों, शिक्षण संस्थानों के भाषाविद् एवं भाषा प्रेमी तथा साहित्यकार जुड़ेगें और सम्मेलन में विभिन्न विश्वविद्यालयों के विभिन्न संकायों से शिक्षाविद्, शोधार्थी और विद्यार्थी हिस्सा लेंगे।