शोधकर्ता के लिए ध्रुव तारे की तरह कार्य करती है परिकल्पना: प्रोफेसर कुलविंदर 

October 8, 2023
शोधकर्ता के लिए ध्रुव तारे की तरह कार्य करती है परिकल्पना: प्रोफेसर कुलविंदर
चौधरी रणबीर सिंह विश्वविद्यालय जींद के शिक्षा विभाग में व्याख्यान श्रृंखला के अंतर्गत दिनांक 06 अक्तूबर 2023 को “शैक्षिक अनुसंधान में परिकल्पना निर्माण एवं परीक्षण” विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया, जिसके लिए पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला के शिक्षा विभाग के प्रो॰ कुलविंदर को आमंत्रित किया गया। विश्वविद्यालय कुलपति डॉ॰ रणपाल सिंह ने शिक्षा विभाग द्वारा आयोजित करवाए गये “शैक्षिक अनुसंधान में परिकल्पना निर्माण एवं परीक्षण” को विद्यार्थियों के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण बताया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय कुलसचिव प्रो॰ लवलीन मोहन ने कहा कि परिकल्पना की सत्यता सिद्ध करने व स्वीकार या अस्वीकार करने के लिए परीक्षण की कसौटियों से गुजरना पड़ता है और कहा कि भाषा जितनी सरल, विशिष्ट और संप्रत्यात्मक रूप से स्पष्ट हो उतना ही अच्छा होता है। शिक्षा विभाग प्रभारी डॉ॰ रितु रानी ने प्रो॰ कुलविंदर का विभाग में अपनी सेवाएं प्रदान करने और आमंत्रण स्वीकार करने के लिए धन्यवाद किया, उन्होंने विभाग में पधारने पर उनका स्वागत किया। विभाग की छात्रा अनु ने प्रो॰ कुलविंदर का परिचय दिया और उनकी उपलब्धियां के बारे में सभी को अवगत करवाया। प्रो॰ कुलविंदर ने कहा कि किसी भी अनुसंधान अध्ययन के नियोजन एवं क्रियान्वयन में शोध परिकल्पनाओं का निर्माण काफी महत्वपूर्ण सोपान होता है। अनुसंधानकर्ता जब एक बार अपनी अनुसंधान समस्या के चयन और पहचान संबंधी निर्णय ले लेता है तो फिर उसे आवश्यक रूप से परिकल्पनाओं के निर्माण के बारे में सोचना जरूरी हो जाता है। उन्होंने कहा कि एक परिकल्पना से तात्पर्य किसी समस्या विशेष के समाधान के लिए प्रयुक्त एक ऐसे बुद्धिमता पूर्ण एवं सुनियोजित अनुमान से है जिसे एक शोध प्रश्न का उत्तर देने हेतु घोषणात्मक कथन के रूप में लिखा जाता है। उन्होंने कहा कि अनुसंधान अध्ययन को आगे बढ़ाने के लिए अपनाई गई प्रक्रिया, प्रदत्त संकलन के प्रकारों एवं प्रयोग में ले जाने वाले उपकरण अपनाए गये अनुसंधान अभिकल्प आदि के संबंध में निर्णय लेने के लिए परिकल्पना वास्तव में एक प्रारंभिक प्रेरक तथा आधार बिंदु के रूप में कार्य करती है। उन्होंने बताया कि दो या दो से अधिक चरों के बीच स्थित संबंधों से अवगत कराने, किसी प्रक्रिया विशेष के बारे में कार्य, कारण, संबंध का पूर्वानुमान लगाने या वर्तमान स्थिति या प्रक्रिया के संबंध में अंत:दृष्टि प्रदान करने के लिए बुद्धिमता पूर्ण सुनियोजित अनुमान या कल्पनात्मक समाधान परिकल्पना कहलाता है। परिकल्पना एक शोधकर्ता के लिए ध्रुव तारे की तरह कार्य करती है जो उसका समय-समय पर मार्गदर्शन करती है। उन्होंने विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से शोध परिकल्पना के प्रकार अथवा स्वरूप पर प्रकाश डाला। उन्होंने विभिन्न प्रकार की परिकल्पनाओं जैसे दिशा बोधक परिकल्पना, दिशा विहीन परिकल्पना, और सांख्यिकीय या शून्य परिकल्पना के बारे में विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने बताया कि परिकल्पनाओं का निर्माण करते समय हमें कुछ महत्वपूर्ण बातें जैसे भाषा, किए जाने वाले अध्ययन का प्रकार, परिकल्पना का प्रकार और स्वरूप आदि बातों को ध्यान में रखना चाहिए।उन्होंने अनुसंधान परिकल्पना और शून्य परिकल्पना के अंतर को विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से स्पष्ट किया और कहा कि शून्य परिकल्पना ही एक ऐसी परिकल्पना है जिसका सांख्यिकीय परीक्षण किया जा सकता है। इसीलिए शोधकर्ता को परिणाम तक पहुंचाने के लिए अनुसंधान परिकल्पना को शून्य परिकल्पना में परिवर्तित करना होता है। परिकल्पना निर्माण के पश्चात परिकल्पना का परीक्षण किया जाता है जिसके लिए उन्होंने कहा कि एक शोधकर्ता को सार्थकता का स्तर निर्धारित करना होता है जो सामान्य रूप से 5% और 1% लिया जाता है। फिर सार्थकता के दोनों स्तरों पर ‘टी’ के मान की सीमा निर्धारित की जाती है जिसके आधार पर शून्य परिकल्पना स्वीकृत या अस्वीकृत होती है। ‘टी’ के मान का निर्धारण करने के लिए उन्होंने एक पक्षीय व द्विपक्षीय परिकल्पना के बारे में भी विद्यार्थियों को जानकारी दी। विभाग की छात्रा शिवानी ने प्रो॰ कुलविंदर व उपस्थित सभी स्टाफ सदस्यों का व्याख्यान के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया। विद्यार्थियों ने व्याख्यान के संदर्भ में अपनी सकारात्मक प्रति पुष्टि प्रदान की और कहां की भविष्य में भी हम यही कामना करते हैं कि विभाग हमारे ज्ञान व कौशल संवर्धन के लिए इस प्रकार के आयोजन करवाता रहेगा। इस अवसर पर विभाग के सभी स्टाफ सदस्य व विद्यार्थी उपस्थित रहे।